१५ अप्रैल २००८ की एक रात को एक कमरे में बैठा था। सोच रहा था कि आज इस काम को अंजाम दे ही दिया जाए। रात भर खोज करता रहा और इस नवीन तकनीक का इस्तेमाल करने को आरूढ़ हो गया। कुछ भी घिसा-पिटा लिखा और अपनी ऊंघती हुई फोटो भी डाल दी और सुबह करीब-करीब ६ बजे १६ अप्रैल २००८ को बिट्स पिलानी के कमरा क्रमांक २९० से ज़िन्दगी का पहला पोस्ट हो गया!
मुझे नहीं पता था कि एक छोटा सा पोस्ट मुझे हिन्दी ब्लॉगिंग में अपनी बात रखने और पहचान बनाने में सक्षम कर देगा। पर देख लीजिये, आज उस बात को ६ साल बीत गए हैं और यह अनवरत आज भी चल रहा है।
इन ६ सालों में ब्लॉगिंग से जुड़ी कई बातों को देखा, समझा, सीखा और सुना है। चंद बातें बताना चाहूँगा:
अंत में ज़िन्दगी और ब्लॉगिंग की स्थिरता पर २ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा:
मुझे नहीं पता था कि एक छोटा सा पोस्ट मुझे हिन्दी ब्लॉगिंग में अपनी बात रखने और पहचान बनाने में सक्षम कर देगा। पर देख लीजिये, आज उस बात को ६ साल बीत गए हैं और यह अनवरत आज भी चल रहा है।
इन ६ सालों में ब्लॉगिंग से जुड़ी कई बातों को देखा, समझा, सीखा और सुना है। चंद बातें बताना चाहूँगा:
- ब्लॉगिंग का मकान बनाना बेहद आसान है। ब्लॉग को घर बनाना बेहद मुश्किल है।
- लगन, निष्ठा और जुझारूपन, ब्लॉगिंग के घर में इन सबकी निःसंदेह ज़रूरत है।
- प्रयोग करते रहें। अगर आप मेरी तरह ही नौसीखिए हैं तो प्रयोग करिए। तरह-तरह के लेख लिखिए और देखिये उसका आनंद!
- खूब पढ़ें। खूब सुनें। खूब सोचें। कम लिखें।
- टिप्पणियों के लिए ब्लॉग न करें। मोह माया है जी :)
- दूसरों के ब्लॉग्स पर अपने विचार छोड़ें। खुद लिखें और दूसरों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करें। तभी भाषा की उम्र बढ़ेगी।
- ब्लॉग आपकी निजी जगह है। न ही किसी को इसमें व्यर्थ की सेंध लगाने दें और ना ही किसी और के निजी ब्लॉग पर ऐसा करें। व्यर्थ की राजनीति कम-स-कम यहाँ से दूर रखें।
- जब मन करे तब लिखें पर निरंतर लिखें। (मैंने हर मास कम-स-कम एक पोस्ट डालने का नियम बना रखा है)
अंत में ज़िन्दगी और ब्लॉगिंग की स्थिरता पर २ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा:
"मेरे सन्नाटे को यूँ कमज़ोर न समझना ऐ दोस्त,
किसी दिन सन्नाटे का बवंडर इस भ्रम को तहस-नहस कर देगा"
किसी दिन सन्नाटे का बवंडर इस भ्रम को तहस-नहस कर देगा"
जाते जाते गुड़गाँव में गाया हुआ "एक चतुर नार" भी देख लीजिये!