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मंगलवार, 23 जुलाई 2013

तपस्या

"तपस्या", एक ऐसा शब्द है जो हमें प्राचीन काल में ले जाता है जहाँ एक इंसान योगासन में बैठा, भगवान को याद कर रहा है और घोर तन्मयता के कारण अपने आस पास की हलचल से बेखबर है। कुछ लोग "तपस्या" शब्द से ऐसी कहानियां भी याद करते हैं जो हमें बचपन में सुनाई जाती थी कि फलां ऋषि थे जो एक पैर पर खड़े हो कर तपस्या करते थे, या फलां ऋषि थे जो केवल फूल-पत्तों से पेट भरकर तपस्या करते थे और मोक्ष को प्राप्त होते थे।

आज के युग में चीज़ें बदल गयी हैं। ऋषि के भेस में कोई दिखता है तो सबसे पहला ख्याल "ढोंगी बाबा" का आता है। और आये भी न क्यों? सदियों से इस "तपस्या" में भ्रष्टाचार फैला है और आज नतीजा यह है कि सिद्ध साधू भी "ढोंगी बाबा"की श्रेणी में आ रहे हैं (वो कहते हैं ना, "गेहूं के साथ घुन भी पीसा जाता है")

पर एक "तपस्या" कभी नहीं बदली और वो है एक आम आदमी की तपस्या। सदियों पहले भी वो कुछ पाने के लिए, कुछ कर गुजरने के लिए तपता था, जड़ता था, भीगता था और आज भी उसे कुछ हासिल करने के लिए यह लड़ाई लड़नी पड़ती है। और यह लड़ाई इस देश के लिए भी उतनी ही ज़रूरी है क्योंकि देश में बदलाव बहुत तेज़ी से आ रहे हैं।

आजकल के युवाओं को देख कर देश पर भरोसा कुछ बढ़ रहा है क्योंकि ये वही लोग हैं जो परम्पराओं और रूढ़िवादिताओं को तोड़कर कुछ नया करना चाह रहे हैं, एक नए युग का निर्माण। आप हर रोज किसी ऐसे युवा से मिलेंगे जो 9:00 से 6:00 की नौकरी नहीं कर रहा है परन्तु पढ़-लिखकर, अपने आस-पास पल रहे दुविधाओं के लिए नए नए उपाय निकाल रहा है और अपने बल-बूते पर कंपनी खड़ी कर रहा है। कई ऐसे युवा तपस्वी मिलेंगे जो बड़े बड़े कॉलेजों से पढ़कर नौकरी अस्वीकार कर रहे हैं और अपने ज्ञान जे भण्डार से अपने गाँव, शहर, इत्यादि में सदियों से चले आ रहे सवालों का जवाब ढूंढ रहे हैं। इनमें से कई तो ऐसे भी हैं जो धर्म की ओर बढ़ रहे हैं और अपने धर्म के बारे में विस्तार से जानकार यह ज्ञान बाँट भी रहे हैं। ऐसे युवाओं के बारे में पढ़ना-जानना जितना ज़रूरी है, उससे ज़रूरी है औरों को इनके बारे में बताकर, इनकी हौंसला-अफजाई करना। तभी इस युग का निर्माण होगा और यह देश फ़िर से विश्व सरताज पहनेगा।

पर एक युवा तपस्वी को यह समझना बहुत ज़रूरी है कि शहरों में बढ़ रहे चकाचौंध और दिखावे में कहीं वे भी ना फिसल जाएँ अन्यथा उनकी तपस्या भी सिर्फ दिखावा ही रह जाएगी। यह जानना ज़रूरी है कि अभी कमाया हुआ हर एक पैसा अहम है। अगर पैदल चल सकते हैं तो रिक्शा क्यों लें? अगर रोटी मिल रही है तो पिज्जा में पैसे क्यों गंवाएं? जब तक इंसान पैसे की कीमत नहीं समझता, तब तक वह कभी भी सफल नहीं हो सकता। ऐसे भी कई उदाहरण मिल जाएंगे जहाँ जोश में कुछ नया तो शुरू कर लिया पर होश को काम में नहीं लाये और सारे पैसे गंवाकर फ़िर से उसी चूहे बिल में घुस गए।

दूसरी बात जो एक युवा उद्यमी के लिए बहुत आवश्यक है, वह यह है कि वह अपने परिवार से सदा जुड़ा रहे। सबकी रजामंदी से किया हुआ काम फ़िर बहुत आसान हो जाता है। अगर आप विफल भी हुए तो आपका परिवार आपको कभी नहीं छोडेगा मगर उस वक्त आपके दोस्तों का कोई नामो-निशान नहीं मिलेगा। इसलिए अपने परिवार के साथ हमेशा जुड़े रहे क्योंकि वे ही आपके सच्चे हितैषी हैं और अग्रजों के मार्गदर्शन से कई चीज़ें आसान हो जाती हैं।

तीसरी बात भी उतनी ही महत्वपूर्ण है क्योंकि ये दुनिया जितनी तेज़ी से दौड़ रही है, इस दुनिया का खाना भी उतना ही खराब होता जा रहा है। कई लोग तो अपना बसर "फास्ट फ़ूड" पर ही कर रहे हैं और यही कारण है कि दिल के दौरों से मौतें अब 25-30 सालों में भी होने लगी है। एक तो आप काम से इतने परेशान रहते हैं और ऊपर से आपका खाना, खाना नहीं ज़हर? नए दिशाओं में बढ़ने वाले युवकों के लिए अच्छा, स्वस्थ खाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि जब आप स्वस्थ खाना खाएंगे तभी आप स्वस्थ रहेंगे और तभी आपकी उर्जा बनी रहेगी। उर्जा रहेगी तभी आपकी तपस्या सफल होगी इसलिए इस बात का ख़ासा ध्यान रखना भी उतना ही आवश्यक है।

युवा उद्यमियों (Young Entrepreneurs) के लिए यह तपस्या समय के साथ एक दौड़ है। आज वह दौर नहीं जहाँ आप 100-150 साल जिया करते थे। आज वह समय है जहाँ 60 तक पहुंचना बड़ा माना जाता है। इसलिए यह तपस्या अब और कठिन हो गयी है। ज़रूरत है आपको अपनी जान लगाने कि और ज़रूरत है बाकियों को ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करने की। तभी हम और आप एक ऐसे देश के वासी कहलाएंगे जिसका भूत गौरवशाली था और भविष्य भी!