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शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

दिखावा और हम - कब बदलेंगे हम?

लो एक साल और निकल लिया सस्ते में और हमें तो माधुरी भी नहीं मिली रस्ते में..

कई लोगों ने सरकार के खिलाफ विरोध में नए साल के जश्नों को एक तरफ कर दिया। काबिल-ए-तारीफ़ है उनका जज्बा और हक़ की लड़ाई। और वहीँ कितने ही लोगों ने हर साल की तरह दारु पी कर हुडदंग मचाया। काबिल-ए-तारीफ़ है उनका ढीठपना और उससे ज़्यादा काबिल-ए-तारीफ़ है पुलिस का उनपर डंडा मारना। ऐसे लोगों को सिर्फ एक ही बार डंडे नहीं पड़ने चाहिए परन्तु इनको हर महीने पुलिस थाने बुलाया जाना चाहिए और डंडे पड़ने चाहिए अगले ६ महीनों तक। जब तक क़ानून सख्त नहीं होंगे ऐसे लोग हर साल अपना जज्बा जाहिर करते रहेंगे। पेड़ को उगने नहीं देने का मतलब ये नहीं कि हम बार-बार डाल ही काटते रहे, जड़ से उखाड़ने के लिए एक बार की मेहनत ज़रूरी है।

अचरज तो इस बात से होता है कि ज़्यादातर लोग सिर्फ इस लिए पीते हैं ताकि वो किसी एक झुण्ड का हिस्सा बन सकें। अर्थात उस टोली में घुसने के लिए लोग खुद को बदलने को तैयार हैं। लानत है ऐसे दोस्तों पर जिनकी दोस्ती आपके अस्तित्व को बदलना चाहती है। पियो, पर अपनी मर्ज़ी से। लोगों के बहकावे में आ कर पियोगे तो पछताओगे।

वैसे तो लोग सिगरेट भी इसीलिए पीते हैं। टशन दिखाने के लिए! टशन के लिए अपने बदन को छलनी करने से ना कतराने वालों के लिए कोई सलाह ख़ास काम की नहीं है। वैसे भी इतनी आबादी हो रही है। ऐसे लोग जो अपने शरीर और आस पास के वातावरण के प्रति कोई संवेदना नहीं रखते, प्रकृति भी ऐसे लोगों के प्रति कोई भावना न रखे तो बेहतर है। धुआं और आबादी, दोनों से निजात। और हम-आप जैसे कई लोग जिन्हें निष्क्रिय धुम्रपान से सख्त नफरत है, चैन की सांस ले सकेंगे, वस्तुतः!

और आज का माहौल देखें तो दिखावे में बहकावे वाले लोगों की कतार, सुबह सुबह पानी के लिए कतार लगाने वाले लोगों से भी लम्बी है। ज़रूरत है हर घर में नए सोच की। कि क्यों उनके घर से निकला युवा आज दोस्तों के दबाव में आ कर गलत आदतों को ग्रहण कर रहा है। आखिर आस्तित्विक शिक्षा में भूल कहाँ हुई जो वह युवा भूल पे भूल किये जा रहा है? जिम्मेवारी तो उन्हें लेनी होगी कि देश और समाज को एक जिम्मेदार नागरिक देने में वह असफल रहे। पर क्या आने वाली पीढ़ी के लिए वो सही मसौदा तैयार कर पाएँगे जो दिखावे का ग्रास ना बनें? ज़रूरत है घर-घर में चर्चा करने की और उनपर त्वरित कार्यवाही करने की।

अगर आज ही से हम चपलता नहीं दिखाएंगे तो आने वाले समय में हमारे शब्द भी ऐसे ही होंगे कि "आज की पीढ़ी ये, आज की पीढ़ी वो.." पर असल में हम होंगे जिम्मेवार उस पीढ़ी को वैसे बनाने के लिए।

नए साल की शुभकामनाएँ और यही दुआ है कि हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आएँ और हमारा समाज एक बेहतर समाज के रूप में उभरे।