१४ मई २०१२ का अखबार देखिएगा | बड़ी ख़ुशी हुई |
अब पहली बार इतने बड़े समाचार पत्रिका में आलेख छपे तो कितनी ख़ुशी होगी, इसका अंदाजा काफी लोगों को होगा | पर इससे ज्यादा ख़ुशी इस बात कि की संतोष त्रिवेदी जी ने कई महीनों पहले मुझसे जनसत्ता के लिए आलेख माँगा था पर उस समय "लघु कथा" का मेरे ब्लॉग पर बोलबाला था तो उन्होंने कहा कि थोडा बड़ा लेख लिखूं | मैंने कहा कि कोशिश करुना और पिछला लेख सामाजिक खेल थोडा विस्तृत लेख था समाज और हमारी सोच पर |
संतोष जी ने चुपके से यह आलेख जनसत्ता में भेज दी और १४ मई की सुबह मुझे मेल किया कि आज के अंक में मेरा आलेख भी छपा है | सच कहूँ तो सुबह-सुबह यह मेल पढ़ कर मन बेहद खुश हो गया!
मैं तहे दिल से धन्यवाद दूंगा संतोष जी का जिन्होंने मेरे लेख को जनसत्ता में जगह दिलवाई |
आप वह लेख ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं और नीचे दिए गए चित्र में भी देख सकते हैं |
धन्यवाद!
अब पहली बार इतने बड़े समाचार पत्रिका में आलेख छपे तो कितनी ख़ुशी होगी, इसका अंदाजा काफी लोगों को होगा | पर इससे ज्यादा ख़ुशी इस बात कि की संतोष त्रिवेदी जी ने कई महीनों पहले मुझसे जनसत्ता के लिए आलेख माँगा था पर उस समय "लघु कथा" का मेरे ब्लॉग पर बोलबाला था तो उन्होंने कहा कि थोडा बड़ा लेख लिखूं | मैंने कहा कि कोशिश करुना और पिछला लेख सामाजिक खेल थोडा विस्तृत लेख था समाज और हमारी सोच पर |
संतोष जी ने चुपके से यह आलेख जनसत्ता में भेज दी और १४ मई की सुबह मुझे मेल किया कि आज के अंक में मेरा आलेख भी छपा है | सच कहूँ तो सुबह-सुबह यह मेल पढ़ कर मन बेहद खुश हो गया!
मैं तहे दिल से धन्यवाद दूंगा संतोष जी का जिन्होंने मेरे लेख को जनसत्ता में जगह दिलवाई |
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