नया क्या?

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

परवरिश

संगीत के क्षेत्र में गुरूजी ने बहुत नाम कमाया था.. कई देशों और महफ़िलों की शान रह चुके थे वो..

अब उनकी तमन्ना थी की उनकी दोनों बेटियाँ भी संगीत के क्षेत्र में उनकी तरह नाम करे और समाज और देश का भी सर ऊँचा करे..

अच्छे ख्यालों से उन्होंने दोनों बेटियों को संगीत की शिक्षा-दिक्षा देनी शुरू की..

बड़ी बेटी का तो खूब मन लगता था और पिताजी की एक आवाज़ में ही वह आ कर रियाज़ के लिए बैठ जाती पर छोटी वाली को यह पसंद नहीं आता था..
कई बार डरा कर बुलाना पड़ता तो छोटी वाली बहुत सहम जाती पर कुछ कर नहीं सकती थी.. उसका सहमा हुआ चेहरा उसके पिता को नहीं दिखता था..

कुछ सालों तक ऐसा चलता रहा और छोटी के अंदर रोष और गुस्सा बढ़ता रहा पर बोला उसने कुछ नहीं.. पिताजी ज़बरदस्ती करके रियाज़ के लिए बिठा लेते और उसे बैठना पड़ता..

पर एक दिन वो भरा हुआ ज्वालामुखी फट पड़ा.. छोटी रियाज़ से उठ खड़ी हुई और पिताजी पर बरस पड़ी.. बोली-"नहीं करना मुझे रियाज़, मुझे संगीत में रूचि नहीं है.. क्या आपको यह बात इतने सालों में समझ नहीं आई? केवल ज़ोर देने से मैं संगीत नहीं सीख सकती.. मेरी दूसरी कलात्त्मकता को आपके ज़ोर-ज़बरदस्ती ने मौत की घूँट पिला दी है.. आपने मेरी जिंदगी के कई विकासशील सालों को बर्बाद कर दिया है"

इतना कहकर वह रोने लगी और पैर पटकती हुई कमरे से चली गयी..

बड़ी और गुरूजी भौंचक्के से बैठे देख रहे थे..
गुरूजी कभी बड़ी को देखते और कभी दरवाज़े की ओर.. सोच रहे थे परवरिश तो दोनों की एक ही हुई है फिर यह बदलाव कैसा?
पर उनके ज़हन में यह बात नहीं आई कि सभी इंसानों को एक ही तराज़ू में नहीं तोला जा सकता..

जाते-जाते मेरा रिकॉर्ड किया हुआ एक गीत सुनते जाइए: चाँद सिफारिश (फ़ना)