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शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

जियो जी!

काम, काम सब कर रहे हैं। सब व्यस्त हैं, दुखी हैं पर सब फिर भी काम कर रहे हैं।

कोई कहता है शौक बड़ी चीज़ है, हम कहते हैं काम बड़ी चीज़ है
शौक से घर थोड़े न चलता है, काम से चलता है।
शौकवाले होगे तो अच्छी स्त्री नहीं मिलेगी पर कामवाले होगे तो अच्छी स्त्री आपको ज़रूर ढूँढ लेगी।


जो केवल शौक रखते हैं, वो काम नहीं कर सकते पर जो काम करते हैं वो शौक भी रखते हैं। इसलिए जिसने भी कहा है कि शौक बड़ी चीज़ है दरअसल लोगों को उल्लू बना रहा है, अपना उल्लू सीधा करने के लिए।
वह तो बात भी गलत बेच रहा है और उत्पाद (पान-मसाला) भी।
पर उसके घर सुख है। आम लोग उसकी बात मानते हैं।
शौक रखते हैं और पान-मसाला खाते हैं। खुद परेशान है और घर वालों के लिए हैवान हैं।


"परेशान", यह शब्द जिसने भी बनाया होगा, बहुत दुखी रहता होगा। शादी-शुदा होगा शायद।


हमारे एक वरिष्ठ अग्रज हैं, बहुत मस्त। वो अपना परिचय ऐसे देते हैं:
हेलो जी, मैं फलां फलां, एक ही कम्पनी में हूँ कई सालों से, एक ही जगह हूँ कई सालों से, एक ही घर में रहता हूँ कई सालों से और फिर ऊपर देख कर थोड़ा सोचते हुए, 'हाँ, पत्नी भी एक ही है।'
उनके चेहरे पे बड़ी खुशी होती है तब। सब हँसते हैं, वो भी, सब खुश, वो भी।
ऐसे लोगों से मिलते रहना चाहिए।


कुछ लोग भाग्यशाली होते हैं जो एक को भी संभाल लें। वरना भारत में ऐसी परेशान आत्माओं की कमी नहीं है जिन्होंने खुशी-खुशी ४-४ शादियाँ की और "हम दो, हमारे दो" की वाट लगा दी। बोले तो दुर्गति कर दी।
वाट तो उनकी भी लगती ही है पर इंसान दुनिया में वाट लगवाने ही आया है। खुद के पैर पे कुल्हाड़ी मारते हैं और हमें हँसने का मौका देते हैं। ऐसे लोग भी होने चाहिए दुनिया में नहीं तो हंसी-ठिठोली कैसे होगी? नित नए-नए चुटकुले कैसे बनेंगे?


हमारा एक हमउम्र मित्र है। वो परेशान है। बाकी कई लोगों की तरह। पर वो अपनी परेशानी यदा-कदा जाहिर करता रहता है इसलिए उसी की बात बता रहा हूँ।
वो ऑफिस जाता है, घर आता है, रस्ते में टहलता है, मॉल में घूमता है, सड़कों पर चलता है तो जोड़ों को देख कर जलभुन जाता है। अपने गम को खुद पीता नहीं है, हमें भी फ्री में देता है। कहता है यार कोई तो हो अपनी भी जिसे दिल की बात बता सकें। हम सोचते हैं, ये बात भी तो दिल की है और तुम बता भी रहे हो हमें, फिर किसी और की क्या ज़रूरत? पर हम कुछ कहते नहीं, उसे दिलासा देते हैं कि कोई बात नहीं हम भी तेरे जैसे ही हैं पर देख हम रोते हैं क्या? हमें अपने घर वालों पर पूरा भरोसा है। वो कोई पल्ले बाँध ही देंगे। नहीं तो रिश्तेदारों की भी कमी नहीं है।


भगवान ने घर वालों को इसके लिए बनाया हो न हो पर हमारे रिश्तेदारों को यही काम दे कर भेजा होगा। हमारी नौकरी लगी तो लोग ऊँगली, आँख और आवाज़ सब उठाने लगे, पूछते हैं "शादी कब कर रहे हो?" हम सोचते हैं, "ऐं"?
पर हम चुप रहे। हमने सोचा, चलो थोड़ी ज़हमत इन्हें भी उठाने दो। और कुछ काम तो हैं नहीं, यही सही।


रिश्तेदारों में भी जो पुरुष वर्ग होता है उसे इन सब कामों में खासी दिलचस्पी नहीं होती है।
पर महिला-वर्ग में तो उथल-पुथल मची रहती है। उनके मन में शादी की बात से ही सुनामी आ जाती है।
वो लड़कों को खूब चिढ़ाते हैं। किसी भी शादी में जाते हैं तो हर लड़की का बायो-डाटा ले कर आते हैं और फिर चिढ़ाते हैं।
और एक दिन लड़का घर से भाग कर शादी कर लेता है, सब हाथ-मलते रह जाते हैं।
सबकी दिली ख्वाहिश थी कि ये लड़का उन्हीं के हाथों सूली चढ़े पर लड़के ने किसी को मौका नहीं दिया, ख़ुदकुशी ही कर ली।


हाँ तो मैं बात कर रहा था परेशानी की। मेरा अदद दोस्त परेशान है। उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है और लड़की दोस्त भी कम ही हैं, इसलिए।
और भी कई परेशान हैं। जिनके पास गर्लफ्रेंड है। वो हमेशा रोती हैं। खाने को पूरा दो तो भी रोती ही रहती हैं, पड़ोस में किसी ने कुछ बोल दिया तो रो पड़ती हैं, कुछ नहीं कहा तो रोती हैं, फोन नहीं किया तो रोती हैं और फोन किया तो उसपर भी रोती हैं। बॉयफ्रेंड समंदर है, उसमें रो के गिरे आंसूओं का कोई असर नहीं होता है। वो सोचता है, 'कहाँ फंस गया' पर किसी तरह काम चला रहा है। वो भी परेशान है।


यह बात अपने दोस्त को भी बताई पर जब मुनि विश्वमित्र को मेनका ने डिगा दिया था फिर मेरा दोस्त तो बढ़ते काम और बढ़ते दाम का मारा एक आम इंसान है, उसकी क्या बिसात?
वो आज भी परेशान हैं। हम भी उसकी परेशान इमें शरीक होने के लिए तत्पर हैं, इसलिए परेशान हैं।


पर परेशानी से ज़िन्दगी नहीं चलती। ज़िन्दगी में उथल-पुथल हो रही हो तो उसे परेशानी नहीं कहते हैं, वो तो मात्र उथल-पुथल है।
कोई कहता है सुख बांटो, बढ़ता है। हमने का सही है बॉस, बिलकुल सही है।
उसी ने फिर कहा, दुःख बांटो, घटता है। मैं वहाँ से कट लिया। मुझे अंदाज़ा लग गया था कि यह ज़रूर अपनी दुःख-भरी कहानी सुनाने वाला है, इसलिए भूमिका बाँध रहा है।


दुःख बांटने से घटता नहीं है। आजकल सब कुछ बढ़ता है। काम, दाम, घोटालों की रकम, जंक फ़ूड, मोटापा।
लोग जहाँ देखो दुःख बाँट रहे हैं पर ये साला दुःख तो वैसा का वैसा है। एक खतम नहीं होता कि दूसरा हाज़िर!
इसलिए मैंने सोचा कि दुःख बांटों पर केवल वैसे लोगों के साथ, जो आपके साथ सुख भी बांटते हैं। वही सही मायनों में आपको ठीक तरीके से समझते हैं। वो आपको सलाह देंगे जो आपके लिए सही होगा। केवल सहानुभूति से काम नहीं चलता। हर दुःख का उपाय होता है जो कि कुछ विरलो के पास ही होता है। बाकी सब तो सलाहबाज़ी में बहुत विश्वास रखते हैं।


इसलिए अपने दिल को समंदर बना लो जिसमें दुःख के आँसू की कोई बिसात न रह जाए। अरे कब तक यूँ रोते-रोते फिरोगे? वो कहते हैं न "लिव लाइफ किंग साईज" केवल सुनो मत, जियो!


और मैं न ही अपना उल्लू सीधा कर रहा हूँ और न ही किसी को बना रहा हूँ।
काम बड़ी चीज़ है, शौक नहीं।
काम करोगे तो शौक के लिए भी टाइम निकल आएगा, नहीं तो तू हाथ मलता रह जाएगा।


हमने तो यही तय किया है। खुश रहेंगे, खुशी बांटेंगे और दुःख की वाट लगाते फिरेंगे। बहुत मज़ा आता है,  कोशिश करियेगा।


एक खूबसूरत नगमा आप सब के लिए छोड़े जा रहा हूँ, पढ़िए, सोचिये और अमल में लाइए:
हम हैं राही प्यार के हमसे कुछ न बोलिए