वो निःशब्द, निस्तब्ध खड़ी रही,
हम हँसते रहे, फंदे कसते रहे,
वो निर्लज्ज कर्ज में डूबती रही,
हम उड़ती ख़बरों को उड़ाते रहे,
वो रोती रही, सिसकती रही,
हम बेजान खिलौनों से चहकते रहे,
वो चीखती रही, चिल्लाती रही,
हम अपने जश्न में उस आवाज़ को दबाते रहे,
वो डरती रही, बिकती रही,
हम खरीदारों का मान बढ़ाते रहे,
फिर एक दिन,
उसने आत्महत्या कर ली,
हम पन्ने बदलते रहे,
हम चैनल टटोलते रहे,
हम चाय पर बहस करते रहे,
ठंडी चाय पर मामला ठंडा हुआ,
हम ज़िन्दगी को उसी ज़िन्दगी की तरह जीते रहे,
आज फिर से,
वो निःशब्द, निस्तब्ध, निर्लज्ज खड़ी है...
सिसकती, दुबकी कहीं जड़ी है..
इंतज़ार उसे अब न्याय का नहीं है,
इंतज़ार है तो बस
आत्महत्या का..
हम हँसते रहे, फंदे कसते रहे,
वो निर्लज्ज कर्ज में डूबती रही,
हम उड़ती ख़बरों को उड़ाते रहे,
वो रोती रही, सिसकती रही,
हम बेजान खिलौनों से चहकते रहे,
वो चीखती रही, चिल्लाती रही,
हम अपने जश्न में उस आवाज़ को दबाते रहे,
वो डरती रही, बिकती रही,
हम खरीदारों का मान बढ़ाते रहे,
फिर एक दिन,
उसने आत्महत्या कर ली,
हम पन्ने बदलते रहे,
हम चैनल टटोलते रहे,
हम चाय पर बहस करते रहे,
ठंडी चाय पर मामला ठंडा हुआ,
हम ज़िन्दगी को उसी ज़िन्दगी की तरह जीते रहे,
आज फिर से,
वो निःशब्द, निस्तब्ध, निर्लज्ज खड़ी है...
सिसकती, दुबकी कहीं जड़ी है..
इंतज़ार उसे अब न्याय का नहीं है,
इंतज़ार है तो बस
आत्महत्या का..