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मंगलवार, 15 सितंबर 2009

जय हिन्दी हो !!


तो जनाब हिन्दी दिवस तो निकल गया पर हम वो थोड़े ही ना हैं जो हिन्दी केवल हिन्दी दिवस वाले दिन ही पढ़ते, लिखते या बोलते हैं... अब जब भारतीय फिरंगियों को (जिन्हें हिन्दी आती ही नहीं) रत्ती भर इस बात का गम नहीं है कि अपनी मातृभाषा ही नहीं आती है तो हम भी कम नहीं... हमें भी उतना ही गर्व है कि हिन्दी शान से बोलते, लिखते और पढ़ते भी हैं..
अब संयोग कि बात ही देख लीजिये.. कल हिन्दी दिवस गया और मैं अपनी ज़िन्दगी का पहला हिन्दी उपन्यास पढ़ रहा हूँ.. बस यह समझ लीजिये की एक-दो दिन में ख़तम ही होने वाली है..
आपको अचरज हो रहा होगा कि बालक पिछले साल भर से हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहा है और आज तक इसने एक भी हिन्दी उपन्यास के पन्ने न झाड़े? अब इसे आप मेरे किस्मत के खाते में डालें या फिर मेरे आलस पर थोपें पर सत्य वचन तो यही है कि यह उपन्यास मेरी पहली है और मैं इसका ऐसा कायल हो गया हूँ कि अब तो हर हफ्ते एक न एक नया उपन्यास पढूं... पर देखिये कितना संभव हो पाता है..

रंगभूमि
प्रेमचंद जैसे महान लेखक और हिन्दी के उपासक की जितनी प्रशंसा की जाय कम ही है.. मैंने अपने स्कूल के समय एक-दो कहानियां ज़रूर पढ़ी थीं और लोगों के मुख से इनके बारे में बहुत सुना भी था पर यह न पता था कि इनकी एक किताब मुझे इनका दीवाना बना देंगी..
रंगभूमि जीवन के हर वर्ग को अपनी आगोश में लेता है.. वह हर तरह के चेहरे को बेनकाब करता है.. वह हर तरह के भाव को अपने में समेटे हुए है..

जहां एक अँधा अपनी लड़ाई अकेले ही लड़ रहा है वहीं पर इज्ज़तदारों की नींद एक साथ ऐसी उडी हुई है मानो एक बालक किसी गबरू जवान को उठा कर पटक दे.. सूरदास अँधा है पर निर्बल नहीं.. वह शरीर और मन दोनों से पूरे गाँव का दिल जीते हुए है और शायद यह जीत अंत तक बनी रहेगी (अब मैंने भी पूरा पढ़ा नहीं है और आपको बता दूं तो रोमांच कहाँ रह जाएगा?)..

वहीँ दूसरी ओर गहन चिंतन और मनन करने वाले कुछ नौजवानों की अपनी अलग ही ज़िन्दगी चल रही है जिसे वो अपनी विस्तृत और संकीर्ण सोच से इसे खेल रहे हैं.. यहाँ मौत भी है और ज़िन्दगी भी.. यहाँ प्रेम भी है और नफरत भी.. यहाँ सम्मान भी है और तिरस्कार भी..
इनकी कहानी हम जैसे युवकों/युवतियों से ज्यादा जुड़ी हुई है.. इसलिए नहीं कि हमारे और इनके राह एक हैं पर इसलिए कि ये जैसा सोचते हैं वैसे ही हम भी करते हैं..

तो रंगभूमि मेरे मन को इस तरह रंग चूका है कि छूटे ना छूटे.. जहाँ ज़िन्दगी के हर रंग को प्रेमचंद ने अपनी कलम से इतने गहरे और सुव्यवस्थित तरीके से सराबोर किया है.. मानिए मेरी.. अगर आप भी न रंगे तो यह पोस्ट ही मिथ्या समझियेगा..

जितना प्रेमचंद के बारे में सुना था आज बोल भी रहा हूँ.. और आशा करता हूँ कि उनके द्वारा रचित और भी लेख/उपन्यास मेरी आँखों तले गुजरेंगे और मैं उसका रसपान करने में सफल रहूँगा..

यह हिन्दी दिवस प्रेमचंद को समर्पित और हर उस रचना को, जिसने हिन्दी को और भी सशक्त और उच्च भाषा का ओहदा प्रदान किया है..

जय हिन्दी हो !!
जय हिन्दी ब्लॉगर्स की !!

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

YSR - जीवित या मृत ?

 
श्रद्धांजलि और नमन
पोस्ट का शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत..
मैं कोई जासूसी भरी पोस्ट नहीं कर रहा हूँ.. क्योंकि जासूसी आती नहीं और कोशिश की थी तो मुंह की खानी पड़ी थी (पूछियेगा मत किस तरह की जासूसी)

पिछले हफ्ते बहुत हल्ला हुआ.. हर जगह, हर टीवी चैनल, हर अख़बार बस एक ही बात उगल रहे थे.. वाई॰एस॰आर॰ कहाँ हैं? आखिर उनका उड़नखटोला कहाँ गया? और एक दिन बाद ही यह दुखद समाचार पूरे देश में आग की तरह फ़ैल गयी कि एक महान राजनीतिज्ञ की अकस्मात मृत्यु हो गयी है..

मैंने भी इस खबर को अच्छी तरह से अनुसरण किया था और इस सिलसिले में ऑफिस के लोग भी शामिल थे..
जो लोग यहाँ आंध्र से हैं, उनसे जब पूछा कि आपको दुःख है? क्या आप वाई॰एस॰आर॰ को बहुत मानते थे? तो जवाब ५०-५० था.. कोई कहता कि वो सही में एक महान इंसान थे तो कोई कहता कि उन्हें लगता है कि वाई॰एस॰आर॰ दूसरे भ्रष्ट नेताओं की श्रेणी में आते थे (माफ़ कीजियेगा.. मैं यहाँ अपनी राय नहीं दे रहा हूँ और न ही मैं किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूँ.. और मेरे ख्याल में वाई॰एस॰आर॰ बहुत ही उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ थे..)

जब घर आया तो वहां पर भी दोस्तों से भी यही बातचीत हुई..
पता नहीं कितने लोगों ने गौर किया कि नहीं.. पर न्यूज़ में इस देहांत के साथ-साथ यह भी बताया जा रहा था कि आंध्रप्रदेश में एक दिन के लिए सभी स्कूल, बैंक, सरकारी दफ्तर और अन्य सभी दफ्तर बंद रहेंगे..
अब मेरा प्रश्न ये है - क्या एक महान आत्मा के इस संसार के चले जाने पर हम अपनी सहानुभूति एक दिन काम न करके दिखाना चाहते हैं? माना कि शोक सबको है..(आजकल तो एक कुत्ता भी मर जाता है तो पूरा परिवार महीने भर के शोक में चला जाता है.. वो बात अलग है कि सामने बैठा भिखारी अगर भूख या ठण्ड से मर जाए तो वही लोगों के कान में जूं तक न रेंगेगी).. 

पर शोक का मतलब यह है क्या कि एक दिन हम काम नहीं करेंगे पर सिर्फ रोएंगे? एक कर्मठ इंसान की मृत्यु पर ऐसा होना ही उस इंसान की कर्मठता को नकारता हुआ नज़र आता है.. बहुत दुःख की बात है कि राजनीति अपने पाँव किसी के मृत्यु पर भी पसार लेती है.. पता नहीं इस एक दिन में पूरे देश को कितने करोड़ रुपयों का नुक्सान होगा.. पता नहीं कितने उस दिन भूखे पेट सोएंगे.. पता नहीं कितने बच्चे उस एक दिन की पढ़ाई से वंचित रह जाएँगे.. और पता नहीं हम अनजाने में ही उस महान आत्मा की प्रतिष्ठा में कितने छेद करेंगे..
जो इंसान हर दिन जी-जान से राज्य को और साथ-साथ देश को आगे बढाने में लगा हुआ था, आज उसी के निधन पर देश कितना पीछे हो जाएगा..
बात बड़ी मामूली सी लगती है पर अगर हम सच्चे दिल से उस शख्स को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उस दिन हमें एक संकल्प लेना चाहिए था कि
आज से हम एक..सिर्फ एक अच्छा काम अपनी ज़िन्दगी में करेंगे...
आज हम अपने अन्दर से एक बुराई को मिटा देंगे..
आज से हम सिर्फ एक ही सही... पर बुराई के खिलाफ लड़ेंगे..
पर नहीं यह कोई नहीं कर सका.. करोडों के लिए वो एक दिन सिर्फ छुट्टी मात्र थी.. और मेरी मानिए... उनमें से हजारों को तो यह भी नहीं पता होगा कि छुट्टी क्यों मिली है या वाई॰एस॰आर॰ कौन थे? यह देश की विडम्बना ही समझिये या लोगों की मुर्खता पर मैं यह आपको अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूँ - जब बंगलोर में स्वाइन फ्लू से कई लोगों की मौत हुई तो मैंने अपने ऑफिस में एक व्यक्ति के दूसरे से यह पूछते हुए सुना - "ये स्वाइन फ्लू क्या है?" मैं उस समय न तो हंस सका कि ऐसे लोग भी है.. और न ही रो सका कि आजकल के लोग कितनी छोटी सोच के होते जा रहे हैं..(ठीक जिस तरह कंप्यूटर हो रहा है.. एक अच्छा उदाहरण है)
और इसपर एक और बात.. आंध्र का एक स्थानीय चैनल वाई॰एस॰आर॰ की शैया का सीधा प्रसारण कर रहा था | लोगों की भीड़ उमड़ रही थी और लोग उनपर फूल मालाएं चढ़ा रहे थे.. तभी टीवी के परदे पर नीचे ही नीचे एक ऐड आया : उसमें यह पूछा जा रहा था - क्या आपको लगता है जगन (जो कि वाई॰एस॰आर॰ के पुत्र हैं) अगला मुख्यमंत्री बनेंगे? हाँ/ना में उत्तर xxxxxx नंबर पर एस.एम.एस करें |
यह देख कर तो मन जैसे फट सा गया हो.. मोबाइल कंपनियों के लिए तो यह देहांत भी पैसे बनाने का जरिया बन गयी है.
बहुत ही दुःख हुआ पर कर भी क्या सकते हैं?
नहीं..
हम बहुत कुछ कर सकते हैं..
उस दिन से मैंने प्रण लिया है कि अब हर पोस्ट के साथ एक ऐसा संकल्प लूँगा जो मुझे एक अच्छा इंसान बनेगा..
और इसी सिलसिले में मैं आज यह छोटा सा प्रण लेता हूँ :
आज से मैं अपने आसपास के इलाकों को गन्दा नहीं करूंगा.. मैं जहाँ-तहां चीज़ें फेंककर वातावरण को दूषित नहीं करूंगा |


है यह एक छोटा सा काम पर मुझे पता है.. कम से कम मेरी वजह से गन्दगी तो नहीं फैलेगी..
अगर आप भी इस छोटे से काम में मेरे साथ हैं तो मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है..
कहते हैं - एक-एक कतरा ही पहाड़ बनाता है..
तो क्या आप वो राई बनना चाहते हैं जो एक सदृढ़ और सशक्त "अच्छाई के पहाड़" को जन्म देगा ?
अगर आपका उत्तर हाँ है तो स्वागत है..और आप दूसरे लोगों को भी इसमें शामिल करें..
और अगर ना है तो...फिर कभी.. वो कहते हैं ना..ये ज़िन्दगी बहुत लम्बी है - जब तक वाई॰एस॰आर॰ की तरह मौत अचानक से बुलावा न दे तब तक..
तो आप ज़िन्दगी और मौत से खेलते रहिये.. तब तक मैं समाज सुधार में थोड़ा हाथ बढ़ाता हूँ..
और आप यूँ ही मंथन करते रहिये.. क्या वाई॰एस॰आर॰ की मृत्यु हो गयी है? या वो आज भी अपने अच्छे काम से हम सभी के बीच जीवित हैं और हम सभी को प्रेरणा दे रहे हैं?

तब तक के लिए खुदा हाफिज़.. नमस्कार..


इस पोस्ट का गाना : अनजानी राहों में तू क्या ढूंढता फिरे (लकी अली)
गानों के बोल आप यहाँ देख सकते हैं..