नया क्या?

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

गिनती ज़िन्दगी की

बच्चे थे तो टॉफियाँ गिना करते थे,
थोड़े बड़े हुए तो दोस्त गिना करते थे,

स्कूल पहुंचे तो हाथों पर छड़ियाँ गिना करते थे,
कॉलेज आए तो मार्क्स गिना करते थे,

थोड़े और बड़े हुए तो गर्ल-फ्रेंड्स गिना करते थे,
नौकरी लगी तो तरक्कियां गिना करते थे,

शादी हुई तो बच्चे गिना करते थे,
फैक्ट्री लगाई तो रूपए गिना करते थे,

दादा बने तो पोते गिना करते थे,
आज जा रहे हैं इस दुनिया से

और साँसे गिनने की घड़ी आ गई है..
सोच रहा है क्या सिर्फ़ गिनते गिनते ही ज़िन्दगी निकाल दी ?
काश कभी इन उँगलियों पर उसका नाम भी गिना होता
जिसने यह गिनती बनाई है,

अब क्या फायदा ?
क्या फायदा अब सोचने से ?
साँसों का दामन तो छूट रहा है ....
और साथ-साथ दो आंसुओं की कीमत भी गिन रहा हैं...

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

शुभकामनाएँ !!!

इस सेमेस्टर का आखिरी पोस्ट..

धुंध में धुंधलाती आँखों को,
पेपरों में कांपते हाथों को,
15 दिनों से चल रहे niteouts को,
sem के आखिरी लम्हातों को,
कह रहा हूँ..
टाटा, Gud Bye, सलाम..
X'Mas और नया साल हो आपका सुखद,
बस यही दुआ के साथ पहुंचे आप तक यह पैगाम |

कोशिश करूँगा छुट्टियों में कुछ लिख पाऊँ.
तब तक..
सायोनारा, आदाब, दसविदानियाँ...
[:)] . . .