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बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

घर से दूर, मंजिल के पास - हम बिट्सियन

यह पोस्ट उन सभी लोगों के लिए हैं जो इस त्यौहार के माहौल में अपने और अपने रिश्तेदारों से दूर हैं | मैं भी घर से दूर हूँ लेकिन आज बिट्स के पूजा मैदान में जा कर पुरानी यादें फ़िर से ताज़ा हो गईं |

फ़िर से वो श्रद्धा के साथ माँ भवानी के सामने नतमस्तक होना,वो बंगाल, जो की यहाँ से कोसों दूर है, वहां की चहल-पहल का एक छोटा सा नमूना, थोड़ी-थोड़ी भीड़ में बढ़ता कोलाहल, लोगों के बीच हँसी-ठहाके, बच्चों का बेफिक्र इधर-उधर दौड़ लगाना और वो गुब्बारे को देख कर अनायास ही रो पड़ना, छोटों का आदर के साथ बड़ों के पाँव छूना और बड़ों का भी उतने ही प्यार से उनके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देना, वो धीरे-धीरे आरती के बाद का धुंआ पंडाल में चारों ओर उड़ना और उसकी महकती खुशबु जैसे शरीर के हर कण-कण को भेदती हुई ह्रदय में प्रवेश कर रही हो, वो घंटी का पूरे ज़ोर से बजना जो की बदन की हर रुकावट को भेदती हुई मस्तिष्क के एक कोने में जा कर गूंजने लगती है, वो पंडित का अपने पारंपरिक तरीके के वस्त्र पहनना और पूरे एकाग्रता के साथ आरती में ध्यान लगा होना...यह सब पूजा पंडाल और उसके आस-पास के हाल-चाल थे |

थोड़ा आगे भड़ते ही पता चला की एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होने वाला है | हम भी अपने पैर जमा कर बैठ गए और कार्यक्रम का लुत्फ़ उठाया | अचानक से बैठे-बैठे ही यह ख्याल आया कि स्कूल या घर के कॉलोनी में हम भी जब कार्यक्रम दिया करते थे, तो अपनी बारी के इंतज़ार में दिल धक्-धक् करने लगता था | आज यहाँ जब छोटे-छोटे बच्चे जब अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे तो सभी यादें पानी की एक तरंग बनकर पूरे शरीर को भिगो गई और मैं जैसे वहां खड़ा हुआ बस यह कह रहा हूँ..."अरे खत्म हो गया? ... ज़रा देखो यादों के कुछ और फव्वारे बाकी हों शायद..." लेकिन शायद यहीं उसका अंत था...
"अगर सभी यादें एक ही बार में लौट आएं तो उनका महत्त्व भी तो ख़त्म हो जाएगा ना ?"


इसके बाद मैं नैनो की दिशा में चल पड़ा..यानी बंगाल से गुजरात...FD-II QT ..में गुर्जरी [ गुजरात की असोसिएशन ] ने डांडिया नाईट का आयोजन किया था..मैं वैसे तो केवल देखने ही गया था पर जा कर अपने दोस्त के प्रस्ताव को मना ना कर सका | तो जोश में मैंने भी कुछ घंटे भर डांडिया तोडी | जिन लोगों ने इसे छोड़ा, उनके लिए मेरे ख्याल से दुर्भाग्य ही रहा | कमरे पे कंप्यूटर के सामने बैठकर आप सब कुछ तो नहीं पा सकते हैं ना? मैं आप लोगों से गुजारिश करता हूँ कि बाहर आ कर इन सब चीज़ों का भी आनंद लें..शायद आज से दो-तीन साल पहले जब हमारे कमरों पर कंप्यूटर नहीं हुआ करते थे तो यही सब छोटी-छोटी चीजें हमारी ज़िन्दगी को रंगीन बनाती थी, इसका महत्त्व समझाती थी...यह तो आपके ही ऊपर है कि आप भी इस बेरंग होती ज़िन्दगी में कुछ रंग भरना चाहते हैं कि नहीं ?

और उन लोगों के लिए जो कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति से भ्रमित हो रही है, आप केवल एक दिन के लिए यहाँ आ कर देखिये | अगर आपको हम सब बिट्सियन ने ग़लत नहीं ठहरा दिया तो कम-स-कम मैं अपने आप को बिट्सियन कहलाने से शर्मा जाऊंगा..ये मेरा वादा है आपसे |

हम यहाँ पढ़ाई के साथ भी अपनी संस्कृति को बरकरार रखने की जितनी कोशिश करते हैं, शायद उतनी मेहनत तो उन्होंने भी नहीं की होगी जिन्होनें इस संस्कृति की नींव रखी है |


सभी बिट्सियन को मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई और आशा करता हूँ की वो इसी जोश के साथ हमारी अमूल्य संस्कृति को बरकरार रखने के लिए हमेशा ही कार्यरत रहेंगे |
-प्रतीक

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

आत्महत्या, घोट और हम [जो घोटते नहीं हैं]

नमस्ते दोस्तों,
अचानक ही दिल में ख्याल आया और यह मैं आप लोगों के साथ बांटना चाहता हूँ | पिछले कुछ सालों में मैंने [और आपने भी] कॉलेजों में आत्महत्या [suicide] के बारे में काफ़ी कुछ सुना होगा, पढ़ा होगा | लेकिन हम में से काफ़ी कम लोगों ने ही उस पर ध्यान देने की कोशिश की होगी क्योंकि यह शायद हमारे आस-पास नहीं हुआ होगा और ना ही हम उस इंसान को पहचानते/जानते होंगे | खैर यह तो हर इंसान में एक दुर्गुण है [मैं भी शामिल हूँ जनाब] कि जब तक कोई बात आपसे या आपके जान पहचान वाले से ना हो तो उस पर ध्यान देना एक फिजूल बात हो जाती है |
मेरे ख़याल से तनाव दो कारणों से आप पर बढ़ता है :
1.) आप पढ़ाई में काफ़ी अच्छे हैं और आपको अपने स्तर को बरकरार रखना है | इस लिए आप पर काफ़ी दबाव पड़ रहा है |
2.) आप अपनी पढ़ाई सही से नहीं कर पा रहे हैं और आप अच्छा करना चाहते हैं तब भी आप पर काफ़ी दबाव आ सकता है |

अगर सभी आत्महत्याओं पर सोच-विचार किया जाए तो शायद ऊपर के दो कारण प्रमुख होंगे |
काफ़ी बार यह देखने में आया है कि एक विद्यार्थी अपनी हार को स्वीकार नहीं कर पता है और इस कारण भी वह एक दुखद कदम उठा लेता है |
आज अगर बिट्स की पढ़ाई पद्दति को देखें तो इसको कोसते हुए भी हम काफ़ी हद तक आत्महत्या जैसे चरम कदम से बचे हुए हैं | कारण ?
कारण साफ़ है | यहाँ इतने Tuts, Tests, Comprees, Evaluation Components, बॉस्म, ओएसिस, अपोजी इत्यादि होते हैं कि तनाव नाम की चिड़िया हमारे दिल-ओ-दिमाग से उड़ जाती है | कभी हम परिक्षाओं में फोड़ देते हैं और कभी ZUC से ही काम चलाना पड़ता है लेकिन हमें टेंशन किसी बात की नहीं होती है क्योंकि हम यह कहकर अपने आप को सांत्वना देते रहते हैं कि अभी तो टेस्ट-2, Quiz,Compree बाकी है तो कुछ ना कुछ तो कर ही लेंगे |
जैसा कि मैंने कहा कि हम आत्महत्या जैसी चीज़ से तो बच जाते हैं लेकिन इसमें भी कुछ कमी है | जैसे की हर सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक उसी तरह | हममें चीज़ों को, काम को टालने की बुरी आदत लग जाती है जो की भावी जीवन में जा कर हमारे लिए लाभकारी सिद्ध ना हो |
लेकिन अगर सम्पूर्ण नतीजे की बात करें तो आत्महत्या करने से तो अच्छा है कि हम कुछ काम को थोड़े दिनों के लिए टाल दें |
इस लेख से यह बात तो स्पष्ट होती है कि किसी चीज़ की हद आपकी सेहत और दूसरों के तनाव स्तर के लिए हानिकारक है | इसलिए सभी घोटुओं [बिट्स में जो दिल खोलकर केवल एक ही काम करते हैं, पढ़ना, उन्हें यह उपाधि दी गई है] से आग्रह है कि पढ़ाई और बाकी कार्यों का अच्छा संतुलन बनाएं ताकि लोग आत्महत्या जैसी चीज़ों से दूर ही रहे [अगर ऐसी कोई अप्रिय घटना घटती है तो इसके जिम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही होंगें] |
बाकी लोगों [जो घोटुओं की श्रेणी में नहीं आते हैं, मुझे पता है कोई अपने आपको घोट कहलवाना पसंद नहीं करता है] से यह कहना चाहता हूँ की आप [मेरे सहित] खुशनसीब हैं की कभी-कभी कम नम्बर ला कर आपने अपने अन्दर से वह तनाव को जड़ से निकाल फेंका है {और मुझे घोटुओं से काफ़ी सहानुभूति है कि वो अभी तक इस ज़बरदस्त अनुभव [की कम नम्बर ला कर भी शान से कहना - "अगली बार देखना, फोड़ के आऊंगा" (आऊँगी नहीं हो सकता है क्योंकि बिट्स में घोट लड़कियों के अलावा किसी और तरह की लड़कियों को प्रवेश नहीं मिलता है) ] और खुदकुशी जैसे कठोर राह की और अपने पैर नहीं बढ़ा रहे हैं |
तो फ़िर खुश रहिये, कभी फोड़िये, कभी पपेरों के सामने ZUC जाइये, लेकिन बस तनावमुक्त रहिये और पढ़ाई और दूसरी चीज़ों का अच्छा ताल-मेल बनाए रखिये [आख़िर घर वालों ने आपको इतनी दूर मुख्यतः पढने के लिए ही भेजा है] |
आप सभी को मेरी तरफ़ से हार्दिक शुभकामनाएं ||
-प्रतीक